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‘मनुवादी सोच की बर्बरता…’, ओडिशा में दलित युवकों के साथ हुई घटना पर बोले राहुल गांधी

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Posted On:Tuesday, June 24, 2025

कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने ओडिशा में दो दलित युवकों के साथ हुई अमानवीय घटना को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी है। राहुल गांधी ने कहा कि दलित युवकों को घुटनों पर चलने, घास खाने और गंदा पानी पीने पर मजबूर करना न सिर्फ अमानवीय है, बल्कि यह मनुवादी सोच की बर्बरता का स्पष्ट उदाहरण है। उनका यह बयान उन लोगों के लिए एक आईना है जो दावा करते हैं कि आज जाति कोई मुद्दा नहीं रही।

राहुल गांधी ने आगे कहा कि दलितों की गरिमा को रौंदने वाली हर घटना बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर द्वारा रचित संविधान पर हमला है। यह संविधान जो बराबरी, न्याय और मानवता के लिए खड़ा है, उस पर यह एक गंभीर साजिश है। उन्होंने भाजपा शासित राज्यों में इन घटनाओं की बढ़ती संख्या पर चिंता जताई और कहा कि वहां की राजनीति नफ़रत और ऊंच-नीच के आधार पर टिकी हुई है। खासकर ओडिशा में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाओं के खिलाफ अत्याचार चिंताजनक रूप से बढ़े हैं। राहुल गांधी ने दोषियों को तुरंत गिरफ्तार करने और कड़ी सजा देने की मांग की। उन्होंने स्पष्ट किया कि देश संविधान के आधार पर चलेगा, मनुस्मृति के अधीन नहीं।

घटना का पूरा मामला

यह घटना ओडिशा के गंजाम जिले के खरीगुम्मा गांव की है, जहां रविवार को दो दलित युवकों के साथ अमानवीय व्यवहार किया गया। यह पूरा घटनाक्रम सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें पीड़ितों के साथ की गई बर्बरता साफ देखी जा सकती है। पीड़ित बुलू नायक और बाबुला नायक सिंगिपुर गांव के निवासी हैं और वे अपनी बेटी की शादी के लिए दहेज में तीन गाय खरीदकर घर लौट रहे थे। आरोप है कि रास्ते में एक भीड़ ने उन्हें रोक लिया और उन पर गौ-तस्करी का झूठा आरोप लगाया। इसके बाद उन्होंने युवकों से जबरन पैसे छीनने के साथ-साथ उनके साथ हिंसक और अपमानजनक व्यवहार किया।

सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव

राहुल गांधी के बयान ने इस मामले को राष्ट्रीय स्तर पर एक गंभीर चर्चा का विषय बना दिया है। यह घटना न केवल दलित समुदाय के प्रति बढ़ती हिंसा और अमानवीयता को उजागर करती है, बल्कि पूरे देश में जातिगत भेदभाव और असमानता के मुद्दे को भी ताजा करती है। दलितों के साथ हो रहे इन अमानवीय व्यवहारों ने देश में सामाजिक न्याय और समानता की जमीनी हकीकत पर सवाल उठाए हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की घटनाएं मनुवादी व्यवस्था के बनाए गए घोर असमान सामाजिक ढांचे की परिणति हैं, जहां जाति आधारित भेदभाव अब भी गहरे जड़ें जमा चुका है। ऐसे मामलों में न केवल अपराधियों को सख्त सजा दी जानी चाहिए, बल्कि पूरे सामाजिक ढांचे में सुधार के लिए शिक्षा, जागरूकता और सख्त कानूनों की भी जरूरत है।

विरोध और मांगें

इस घटना के बाद देश भर में दलित समुदाय और सामाजिक संगठनों ने कड़ी निंदा की है। कई मानवाधिकार समूहों ने सरकार से तत्काल कार्रवाई करने और दोषियों को सजा दिलाने की मांग की है। राजनीतिक दलों ने भी इस घटना को लेकर राज्य सरकार और केंद्र सरकार पर दबाव बनाया है कि वे दलितों की सुरक्षा सुनिश्चित करें।

कई नेताओं ने इस मामले को भाजपा सरकार की नीतियों से जोड़कर देखा है, जिन पर आरोप है कि वे सामाजिक भेदभाव को बढ़ावा देती हैं। राहुल गांधी के अलावा अन्य विपक्षी नेताओं ने भी इस घटना को लेकर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से जल्द से जल्द कठोर कार्रवाई करने की अपील की है।

सरकार की प्रतिक्रिया

ओडिशा सरकार ने इस घटना की जांच के आदेश दिए हैं और कहा है कि दोषियों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा। पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। साथ ही, राज्य प्रशासन ने पीड़ितों को सुरक्षा प्रदान करने और उनकी देखभाल करने का आश्वासन दिया है।

हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब दलितों के साथ ऐसी अमानवीय घटनाएं सामने आई हैं। कई बार सामाजिक स्तर पर पुलिस और प्रशासन की कार्यवाही में ढिलाई देखने को मिली है, जिसके कारण अपराधी खुलकर अपराध कर रहे हैं। इसलिए लोगों को प्रशासन की तरफ से ठोस और निष्पक्ष कार्रवाई की उम्मीद है।

निष्कर्ष

राहुल गांधी का यह बयान दलितों के प्रति हो रहे अत्याचारों के खिलाफ एक मजबूत राजनीतिक और सामाजिक आवाज है। यह देश के संविधान की मूल भावना की रक्षा और सामाजिक समानता के सिद्धांतों को पुनः स्थापित करने की मांग करता है। ऐसे मामलों में न्याय दिलाना केवल पीड़ितों का हक नहीं, बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी है।

जाति के नाम पर हो रहे अत्याचार और भेदभाव को खत्म करने के लिए जरूरी है कि सरकार कठोर कानून बनाए और उनका सख्ती से पालन कराए। साथ ही समाज में समानता और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा और जागरूकता अभियान भी चलाने होंगे। तभी हम एक ऐसे भारत की कल्पना कर सकते हैं, जहां सभी वर्गों के लोग सम्मान और समानता के साथ जीवन बिता सकें।

यह घटना हमें याद दिलाती है कि सामाजिक न्याय की लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है और इसके लिए हर नागरिक को आवाज उठानी होगी, ताकि हम एक सशक्त, समतावादी और न्यायपूर्ण भारत का निर्माण कर सकें।


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